खनन के दुष्प्रभाव से हो रही मौतों पर मानवधिकार आयोग ने एसपी को कानूनी कार्रवाई को कहा

एनटीपीसी के चट्टी बरियातू कोल परियोजना से प्रभावित बिरहोर बस्ती का अस्तित्व संकट में

हज़ारीबाग़ – हज़ारीबाग़ जिले में केरेडारी प्रखंड अंतर्गत एनटीपीसी के चट्टी बरियातू कोयला खनन परियोजना से प्रभावित बिरहोर बस्ती में अब तक लोगों की मौत के मामले में एक्टिविस्ट मंटू सोनी के शिकायत पर राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने हज़ारीबाग़ एसपी से आवश्यक कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। खनन के दुष्प्रभाव से अब तक दो बिरहोर की मौत हो चुकी है। जिसको लेकर जिला-प्रशासन और एनटीपीसी पर गंभीर सवाल उठते रहे हैं। बिरोहर बस्ती को बिना बसाए खनन कार्य करने और उसके दुष्प्रभाव से दो मौत होने के बाद जिला-प्रशासन द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नही किए जाने को लेकर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जाता रहा है। शिकायत कर्ता मंटू सोनी ने कहा है कि जिला-प्रशासन कार्रवाई नही करती है कोर्ट में मामला दायर कर लोगों को न्याय दिलवाया जाएगा ।

एनटीपीसी और जिला प्रशासन की भूमिका पर गम्भीर सवाल

एनटीपीसी और उसके एमडीओ (माईन डेवलपर ऑपरेटर) ऋत्विक-एएमआर कंपनी ने फॉरेस्ट क्लियरेंस, पर्यावरणीय क्लियरेंस और खनन सुरक्षा के नियमों/निर्देशो और शर्तों का पूरा किए बिना खनन स्थल के महज कुछ मीटर की दूरी पर लुप्तप्राय आदिम जनजाति बिरोहर बस्ती को बिना समुचित विस्थापित-पुर्नवास किए खनन कार्य कर कार्य चालू कर दिया गया है। जिसके दुष्प्रभाव में आकर 10 अप्रैल 2024 को दुर्गा बिरहोर उर्फ बहादुर बिरहोर की मौत हो गई है। उससे पहले 28 फरवरी 2024 को दस वर्षीय नाबालिक आदिम जनजाति बिरहोर बच्ची की मौत हो गई थी। मौत के बाद कंपनी द्वारा महज चालीस हजार मुआवजा देकर शव दफनाने का मामला प्रकाश में आया है।
विदित हो कि खनन के आसपास घनी मानवीय आबादी भी है जिसे विस्थापित-पुर्नवास किए बिना खनन कार्य जारी किया गया है। पूरे मामले पर जिला-प्रसाशन भी मौन है और आम जनता विवश है। एनटीपीसी और जिला प्रसाशन द्वारा पुनर्वास का समुचित प्रयास करने के आश्वासन देकर मामूली पानी छिड़काव के नाम पर मानवीय आबादी को खतरे में डाल खनन कार्य कर रही है। जिससे भविष्य एनटीपीसी के चट्टी बरियातू कोल परियोजना के खनन स्थल के समीप प्रभावित आदिम जनजाति बिरहोर आबादी 250 की संख्या में है जिसमें 40 बच्चे निवास करते हैं । खनन से धूल बौर विस्फोट से उनकी जान को ख़तरा हर समय बना हुआ होता है। प्रभावित लोग कहते हैं कि उनके खाने, पढ़ने,सोने, नहाने के दौरान धूल और विस्फोट से जीना मुहाल हो गया है। उपरोक्त वर्णित विवरण और तथ्यों से स्पष्ट होता है कि एनटीपीसी और उसके एमडीओ ऋत्विक-एएमआर कंपनी के द्वारा मानवीय आबादी को बिना पुनर्वास-विस्थापित किए उन्हें संकट में डालकर खनन कार्य कर रही है। जिसके दुष्प्रभाव में आकर अब तक दो मौत हो गई है और मानवीय आबादी खतरों के बीच जीने को विवश हैं। मौत होने पर जिला प्रशासन बिरहोर बस्ती को अन्यत्र बसाने का प्रयास करने और पानी छिड़काव करने का नाम पर मूल सवाल और समस्या के दूर भागती है । शिकायत में मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर सवाल खड़ा किया गया है ।

  1. खनन स्थल से प्रभावित महज कुछ मीटर की दूरी पर विलुप्तप्राय आदिम जनजाति बिरहोर बस्ती को बिना बसाए खनन कार्य कैसे शुरू करने दिया गया या अब तक जारी रखा गया है ?

2.खनन के दुष्प्रभाव से नाबालिग किरणी बिरहोर और दुर्गा उर्फ बहादुर बिरहोर की मौत ही चुकी है,उसके दोषियों को चिन्हित कर उनपर हत्या का मुकदमा क्यों नही दर्ज कर रही है ? क्योंकि एनटीपीसी और उसके एमडीओ द्वारा जानबूझकर कोयला मंत्रालय की कार्रवाई से बचने के लिए सामुहिक आबादी के समीप खनन चालू किया गया । यह जानते हुए भी की इससे सामूहिक लोगों की जान को खतरा है। इसके बाद भी खनन शुरू किया गया, तो क्यों न सामूहिक आबादी को मौत के लिए वातावरण/परिस्तिथि उत्पन्न करने और उस दौरान दो लोगो की मौत हो जाने पर उनपर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए ?

3.खनन स्थल के समीप खनन के दुष्प्रभावों से बिरोहर बस्ती के किरणी बिरहोर और दुर्गा उर्फ बहादुर उरांव की मौत का पोस्टमार्टम क्यों नही कराया गया ? क्या ऐसा जानबूझकर सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया जिससे जांच में मौत का दूसरा कारण बताते हुए दोषियों को बचाया जा सके ?
इसलिए दोषियों के ऊपर जानबूझकर सामूहिक मौत/हत्या जैसी परिस्थिति उत्पन्न करने के लिए कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी ।

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