Ranchi : आदिवासी एवं मूलवासी सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की स्थानीय एवं नियोजन नीति को लेकर शनिवार को परिसंवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति एक दूसरे के पूरक हैं. बाबूलाल ने कहा कि संयुक्त बिहार 1982 में बने स्थानीय नीति को झारखंड अलग राज्य बनने पर बिहार पुर्नगठन अधिनियम के अनुसार, मैंने इसे लागू किया था. लेकिन लोगों को समझ नहीं आया और वो इसका विरोध करने लगे. साथ ही बाबूलाल ने कहा कि राज्य में इस समय स्थानीय नीति की जरूरत है और हम इस मांग का समर्थन करते हैं.
कांग्रेस नेता सुबोध कांत सहाय ने कहा कि स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति की लड़ाई आदिवासी भाईयों से ज्यादा मूलवासियों की लड़ाई है, और इसे मूलवासियों को समझना होगा.
जन आंदोलन का सामना करना पड़ेगा
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ करमा उरांव ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि स्थानीय नीति के बिना झारखंड राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि महागठबंधन सरकार को स्थानीय नीति एवं नियोजन नीति पर तुरंत निर्णय लेना होगा, अन्यथा जन आंदोलन का सामना करना पड़ेगा.
आदिवासी मूलवासी समाज जाग चुका है
कार्यक्रम का संचालन करते हुए अंतु तिर्की ने कहा कि आदिवासी मूलवासी समाज जाग चुका है और सरकार की चाल-ढाल से भी वाकिफ हो चुका है. अंतु तिर्की ने कहा कि स्थानीय नीति नहीं बनने से खमियाजा भुगतना पड़ेगा.
कार्यक्रम में ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में सीपीआई नेता भुनेशवर प्रसाद मेहता, सीपीएम के शुभेन्दू सेन, अखिल भारतीय किसान संघ के केडी सिंह, आदि ने संबोधित किया. कार्यक्रम में 54 संगठनों के लगभग पांच सौ अधिक प्रतिनिधि शामिल थे.