अभी तो संघ के पास मोदी जैसे और इनसे तेजस्वी कई रत्न भरे पड़े हैं। संघ के पास विकल्पों की कमी नहीं है। बस उस विकल्प को सबके सामने लाने के लिए सही समय का इंतजार किया जा रहा है।
वर्ष 2024 में हुए लोकसभा चुनाव होना है। समय निकट है। ऐसा लगता है फिर भी जैसे कुछ महीने बाद ही चुनाव है। भारत है यह चुनाव की सरगर्मी कुछ ऐसी ही होती है।
पिछली सरकार के 3 वर्ष से ज्यादा हो चुके है जिसमे कोरोना महामारी ने मानो जीवन की रफ्तार पर ब्रेक-सा लगा दिया, लेकिन इन्हीं 2 सालों के चीजें काफी बदल दी हैं। हमारा देश काफी आगे निकल चुका है। गौर करें तो पाएंगे कि एक नाम “मोदी” ने सारे विपक्ष को एक छत के नीचे खड़ा कर दिया। जो कभी एक दूसरे को राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानते थे वो आज एकजुट हो गए है। मोदी ने इन तीन वर्षों में क्या किया इसकी चर्चा हम इस आर्टिकल में अंत में करेंगे उससे पहले हम बात कर लेते है “TINA” फैक्टर की।
TINA फैक्टर का मतलब यहाँ किसी लड़की से नहीं है।अगर आपकी रुचि राजनीतिक में नही है तो हो सकता है यह टर्म आपके लिए नया होगा खैर TINA का फुलफोर्म अंग्रेजी में है “There is no alternative”, हिन्दी में कहें तो – “कोई विकल्प नहीं है”. आशय है कि ‘पीएम मोदी का भी कोई विकल्प नहीं है’ – जिसे भारत और विश्व के कुछ राजनीतिक पंडितों ने मिलकर गढ़ा है। लेकिन क्या आपको भी ऐसा लगता है कि भाजपा के पास वाकई में मोदी के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।2001 से 2022 – किसी के लिए भी सत्ता में बने रहने के लिए यह एक लंबा समय है। ऐसे में कैसे माना जा सकता है कि यह सिर्फ और सिर्फ इसलिए संभव हुआ क्योंकि कोई दूसरा विकल्प नहीं है, TINA फैक्टर है… There is no alternative to Modi? यह मिथ्या है, गढ़ा गया है। CM से लेकर PM मोदी की उपलब्धियों को कैसे कम से कम दिखाया जा सके – TINA फैक्टर गढ़ने के पीछे की राजनीतिक मंशा सिर्फ और सिर्फ यही है।नीतीश कुमार, केजरीवाल और ममता बनर्जी का सपना!ऐसा नहीं है कि इन वर्षों में अन्य नेताओं ने खुद को पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया है।
नीतीश कुमार खुद पीएम बनना चाहते थे। वह अभी भी पीएम बनने का सपना देखते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी यही सपना है।2014 में जब सोनिया गाँधी के पूर्व सहयोगी और मौसमी प्रदर्शनकारी योगेंद्र यादव केजरीवाल के करीबी थे, उस वक्त केजरीवाल ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए केवल 49 दिनों में ही दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। केजरीवाल बेशक चुनाव हार गए, लेकिन उनकी उम्मीद अभी भी जिंदा है। वह खुद को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।योगेंद्र यादव की बात करें तो वह फिर से गाँधी परिवार के साथ जुड़ गए हैं। राहुल गाँधी ने उन्हें और अन्य कार्यकर्ताओं को अपनी ‘भारत जोड़ो’ कंटेनर यात्रा में शामिल किया है, जो काफी हद तक पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान की ‘कंटेनर यात्रा’ से प्रेरित है, ऐसा आप देख सकते हैं।राहुल गाँधी को भी एक न एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद है- आखिरकार, उनके पिता, दादी और परदादा भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं। राहुल गाँधी को छोड़ कर, अन्य तीन अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले थे। राहुल गाँधी तो चार बार सांसद रह चुके हैं, मोदी से भी ज्यादा बार।ये सभी विकल्प ही तो हैं। हो सकता है कि आप उन्हें वोट न दें, लेकिन ऐसे लोग भी हैं, जो उन्हें वोट देंगे, देते हैं। सिर्फ इसलिए कि आपको नहीं लगता कि वे पीएम बनने के योग्य हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे भी ऐसा ही सोचते हैं। उन लोगों से पूछिए, जिन्होंने इतने सालों में उन्हें वोट दिया है।मोदी ने हिंदुओं के लिए क्या किया? पीएम मोदी को लेकर कुछ लोगों की कई शिकायतें हैं। इनमें से एक यह है कि उन्होंने हिंदुओं के लिए ऐसा क्या किया है? खैर, कुछ हिंदू बेशर्मी से अपनी धार्मिक पहचान का मजाक तक बनाते रहे हैं। हम जिस ‘धर्मनिरपेक्षता’ के साथ पले-बढ़े हैं, उसका तमाशा बनाया जा रहा है। अधिकतर लोग यह महसूस कर रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता को दोतरफा होना चाहिए।‘जय श्री राम’ को आतंकी नारा तक कह रहे ‘उदारवादी’ और इस्लामवादी, जो ठीक नहीं है। मासूम लोगों का सिर काटकर बेरहमी से हत्या कर दी जाती है सिर्फ इस बात को लेकर कि जिन्हें वे अपना ईश्वर का दूत मानते हैं, उन्होंने उनके बारे में कुछ कह दिया। एक सभ्य समाज में यह स्वीकार्य नहीं है।राजनीति सिर्फ चुनाव जीतने भर का नहीं, बल्कि इससे ज्यादा है। नेताओं को एक ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है, जहाँ सभ्य समाज बनाने और इससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जा सके। देश सिर्फ चुने हुए नेताओं से नहीं चलता। नौकरशाह हैं, सरकारी अधिकारी भी हैं, जो सत्ता में बैठे नेताओं के साथ ही देश की सेवा कर रहे हैं। ऐसा लग सकता है कि उन्होंने हिंदुओं के लिए ‘कुछ नहीं किया’, लेकिन वह निश्चित रूप से एक प्रेरक हैं, जिन्होंने कई मुद्दों को उठाया और उस पर तेजी से काम भी किया।कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार के 32 साल बाद ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) जैसी फिल्म बनाई गई। पहली बार बहुसंख्यक भारतीयों को यह एहसास कराया गया कि उनका अतीत रक्तरंजित है। हालाँकि, इस तरह की चर्चा भी चली कि कुछ नहीं हो सकता है, लेकिन इसे एक शुरुआत तो कह ही सकते हैं। चर्चा, बहस और बातचीत होती रहती है।इतिहास को फिर से ठीक किया जा रहा है। यह रातों-रात नहीं होगा। इसमें समय लगेगा, इसलिए हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। देश में विपक्ष की एकजुट होना यह खुद एक बड़ा संकेत है की सिर्फ एक इंसान से ये विपक्ष किस तरह घबराए हुए हैं। अभी तो संघ के पास मोदी जैसे और इनसे तेजस्वी कई रत्न भरे पड़े हैं। भाजपा के पास विकल्पों की कमी नहीं है। बस उस विकल्प को सबके सामने लाने के लिए सही समय का इंतजार किया जा रहा है।