कोयला, अभ्रक जैसे अनमोल खजाने से भरी झारखंड की धरती दुनिया में सबसे पहले समुद्र से बाहर निकली थी। ताजा शोध में पता चला है कि करीब 3.2 अरब साल पहले झारखंड का सिंहभूम इलाका सबसे पहले धरती से बाहर आया था।
Balaajee desk
दुनियाभर में अपनी अभ्रक की खान के लिए मशहूर झारखंड का सिंहभूम जिला पूरी दुनिया को समझने का नजरिया बदल सकता है। एक ताजा शोध में उस व्यापक धारणा को चुनौती दी गई जिसमें ‘जलप्रलय’ के बाद करीब 2.5 अरब साल पहले विभिन्न महाद्वीपों के समुद्र से निकलने के बारे में तमाम दावे किए गए थे। ताजा शोध में कहा गया है कि करीब 3.2 अरब साल पहले धरती पहली बार समुद्र से बाहर निकली थी और जो इलाका सबसे पहले निकला था, वह झारखंड का सिंहभूम इलाका हो सकता है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के शोधकर्ताओं का यह शोध चर्चित जर्नल PNAS में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों ने पाया कि सिंहभूम के बलुआ पत्थर में प्राचीन नदी चैनल, ज्वार-भाटा और तट करीब 3.2 अरब साल पुराने होने के भूगर्भीय संकेत मिले हैं। इससे पता चलता है कि धरती का यही इलाका सबसे पहले समुद्र से बाहर निकला था ।
यूरेनियम और छोटे खनिजों का विश्लेषण करके उम्र का पता लगाया
मोनाथ विश्वविद्यालय में प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर प्रियदर्शिनी चौधरी ने इस शोध में जवाब दिया कि धरती का कौन सा हिस्सा सबसे पहले समुद्र से बाहर आया था। चौधरी ने कहा, ‘हमें गाद संबंधी एक विशेष तरह की चट्टान मिली जिसे बलूआ पत्थर कहा जाता है। इसके बाद हमने उसकी उम्र और किन परिस्थितियों में उनका विकास हुआ, यह पता लगाने का प्रयास किया। हमने यूरेनियम और छोटे खनिजों का विश्लेषण करके उम्र का पता लगा लिया’
चौधरी ने कहा, ‘ये चट्टानें 3.1 अरब साल पुरानी थीं और ये प्राचीन नदियों, तटों और उथले समुद्र की वजह से बनी थीं। ये सभी जलीय इलाके तभी अस्तित्व में आते हैं जब वहां पर कोई महाद्वीपीय जमीन होती है। इसलिए हमने यह निष्कर्ष निकाला कि सिंहभूम इलाका करीब 3.1 अरब साल पहले ही समुद्र से बाहर आ गया था।’ हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि प्राचीनतम महाद्वीपीय जमीन के कुछ हिस्से ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में भी पाए गए हैं।
हजारों साल तक हुआ ज्वालामुखी विस्फोट, फिर बनी धरती
शोधकर्ताओं ने ग्रेनाइट का अध्ययन किया जिससे सिंहभूम इलाके की महाद्वीपीय परत बनी है। चौधरी कहती हैं, ‘ये ग्रेनाइट पत्थर 3.5 से 3.1 अरब साल पुराने हैं और इनका निर्माण व्यापक ज्वालामुखी विस्फोट के जरिए हुआ है। यह विस्फोट धरती के अंदर 35 से 45 किमी की गहराई में हुआ था। विस्फोट का यह सिलसिला कई हजार साल तक जारी रहा। इसके बाद मैग्मा कठोर हुआ और इस इलाके में एक मोटी महाद्वीपीय परत उभरकर सामने आई। अपनी मोटाई और कम घनत्व के कारण महाद्वीपीय परत समुद्र के पानी के बाहर आ गई।’ माना जा रहा है कि इस उल्लेखनीय शोध के बाद अब धरती को समझने का पूरा नजरिया ही बदल सकता है।
साभार इंडियन टाइम्स