नई दिल्ली.आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, यह 2019-20 के दौरान केंद्र सरकार व गुजरात समेत तीन राज्यों द्वारा ‘वेतन और मजदूरी’ पर किए खर्च से भी अधिक था. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के आंकड़ों के अनुसार, केंद्र ने कुल कमीटेड एक्सपेंडिचर 9.78 लाख करोड़ रुपये था. इसमें से ‘वेतन और मजदूरी’ पर 1.39 लाख करोड़ रुपये, पेंशन पर 1.83 लाख रुपये और अन्य ब्याज भुगतान व कर्ज चुकाने पर 6.55 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए.गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में भी यही स्थिति रही. गुजरात में 2019-20 में पेंशन बिल 17,663 करोड़ रुपये था जबकि वेतन और मजदूरी पर 11,126 करोड़ रुपये खर्च हुए.
यानी पेंशन पर आय से 159 प्रतिशत अधिक खर्च हुआ. इसी तरह, कर्नाटक का पेंशन बिल (18,404 करोड़ रुपये) वेतन (14,573 करोड़ रुपये) बिल के मुकाबले 126 प्रतिशत अधिक था. पश्चिम बंगाल के लिए, पेंशन बिल (17,462 करोड़ रुपये) वेतन और मजदूरी (16,915 करोड़ रुपये) पर हुए खर्च का 103 प्रतिशत था. उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और ओडिशा में पेंशन पर हो रहा खर्च वेतन और मजदूरी पर होने वाले व्यय से 2/3 अधिक था.आंकड़ों से पता चलता है कि 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का संयुक्त पेंशन बिल 2019-20 में 3.38 लाख करोड़ रुपये रहा. वहीं, वेतन पर कुल 5.47 लाख करोड़ रुपये खर्च किए गए. यानी देशभर में संयुक्त रूप से पेंशन पर वेतन का 61.82 प्रतिशत खर्च किया गया. गौरतलब है कि कमीडेट एकस्पेंस बढ़ने के कारण सरकार के पास राजस्व का इस्तेमाल दूसरे जरूरत के कामों में करने की गुंजाइश कम होती है.