भोपाल में बने भारत के सबसे हाईटेक रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया है, पहले इसका नाम हबीबगंज रेलवे स्टेशन हुआ करता था। आज यह रेलवे स्टेशन किसी इंटरनेशनल एयरपोर्ट को भी मात देता है। लेकिन हम स्टेशन की भव्यता की नहीं बल्कि उसकी दिव्यता की बात करेंगे, और दिव्यता इस रेल्वे स्टेशन के नाम में है।
जब भोपाल के इस स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखे जाने का समाचार लोगों ने सुना तो शेष भारत तो छोड़िये, मध्यप्रदेश भी जाने दीजिये, भोपाल के नागरिकों तक को भी आश्चर्य हुआ कि ये रानी कमलापति कौन थी? भोपाल को तो नवाबों ने बसाया है, भोपाल में किसी हिन्दू राजा का नाम अगर सुना वो राजा भोज का सुना, तो फिर ये रानी कमलापति कहां से आ गई ?
और रानी कमलापति कौन है, यदि स्टेशन के नामान्तरण के बाद यह प्रश्न आपके भी मन में उठा हो, तो समझिये पिछले एक शतक के षड्यंत्र के परिणाम आंशिकरूप से आपके मस्तिष्क पर भी हुए हैं। वे हमें हमारी जड़ों से काटना चाहते थे और कुछ भी कहो वे कुछ हद तक सफल तो हुए हैं।
खैर, रानी कमलापति को मध्यप्रदेश की पद्मावती भी कह सकते हैं। जैसे पद्मावती ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया था, ठीक वैसे ही रानी कमलापति ने भी जलसमाधि ली थी।
सोलहवीं सदी में समूचे भोपाल क्षेत्र पर हिन्दू गोंड राजाओं का ही शासन था। कमलापति गोंड राजा निजामशाह की पत्नी थीं। भोपाल के पास गिन्नौरगढ़ से राज्य का संचालन होता था। फिर गद्दी का मोह कुटुंबियों में आया ।राजा निजामशाह के भतीजे आलमशाह, जिसका बाड़ी पर शासन था, के मन में गिन्नौरगढ़ को हड़पने का विचार आया। लड़ तो सकता नहीं था, तो घटिया हरकत की, निजामशाह को खाने पर बुलाया ,खाने में जहर मिलाया और राजा को परलोक पहुंचाया।
रानी अपने बेटे नवलशाह की रक्षा के लिए बेटे को लेकर गिन्नौरगढ़ से भोपाल आ गई। भोपाल के छोटे तालाब के पास रानी का महल था। रानी ने अफगानिस्तान से आये हुए मोहम्मद खान से अपने पति के हत्यारे आलमशाह को सबक सिखाने की बात की, मोहम्मद खान एक लाख रुपये के बदले काम करने को तैयार हुआ और उसने आलमशाह को मौत के घाट उतार दिया। पर रानी के पास उस समय धन की पूरी व्यवस्था न हो पाने के कारण रानी ने भोपाल का एक हिस्सा मोहम्मद खान को दे दिया।
किन्तु कुछ समय बाद मोहम्मद खान की भी स्वार्थी और विश्वासघाती वृत्ति बड़ी होकर सामने आ गई। उसकी नीयत पूरे भोपाल पर कब्जा करने की थी और इससे भी बुरी बात यह थी कि रानी पर भी उसकी कुदृष्टि थी ।आखिरकार रानी के चिरंजीव नवलशाह और मोहम्मद खान के बीच युद्ध हुआ ,युद्ध अत्यंत भयानक था। इतना कि जिस घाटी पर युद्ध हुआ वो खून से लाल हो गई, भोपाल में आज भी उसे लालघाटी