बैंक ऑफ इंडिया द्वारा एक मामले में अपील दायर करने में बरती गई 579 दिनों की देरी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि बेपरवाह कर्मचारियों की खिंचाई किए जाने और उन्हें जवाबदेह बनाने की ज़रूरत है. समय आ गया है कि राष्ट्रीयकृत बैंकों को चीज़ों को गंभीरता से लेना चाहिए और उन्हें इस तथ्य के प्रति जागरूक बनाया जाना चाहिए कि उनकी लापरवाही से जनता को बहुत नुकसान होता है.
अदालत ने कहा, ‘सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों/राष्ट्रीयकृत बैंकों और सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी/अधिकारी इस तथ्य के प्रति असंवेदनशील हैं कि वे जनता के लिए काम कर रहे हैं और जनता के पैसे को संभाल रहे हैं. उनका ढुलमुल रवैया जनता के पैसे को गंभीर जोखिम में डाल देता है और परिणामस्वरूप देश की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है. जबकि आवेदक (एक राष्ट्रीयकृत बैंक) अदालत से अपेक्षा करता है कि वह जनता के हितों की रक्षा करे, वे आलसी और लापरवाह बने रहते हैं और अदालतों को हल्के में लेते हैं, जो कि हमारी राय में रोका जाना चाहिए.’