कोराना कर रहा दिमाग़ को कमजोर,मरीजों का वायरस आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहा हैकोरोना से रिकवर हुए मरीजों का वायरस आसानी से पीछा नहीं छोड़ रहा है। संक्रमण को मात देने के कई महीनों बाद भी मरीजों में दिमाग से जुड़ी समस्याएं सामने आ रही हैं। सैंकड़ों मरीजों ने दिमाग की समस्या बताई।अब तक ब्रेन स्ट्रोक के अधिकतर मामले 55 वर्ष से अधिक उम्र वालों के साथ शुगर और ब्लड प्रेशर के मरीजों में देखा गया। ठंड के समय में ऐसे मरीजों को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। हैरानी की बात है, पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि 40 से 55 वर्ष वालों में ब्रेन स्ट्रोक बढ़ा है।
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा प्रभारी डॉ मनीष मंडल भी पहली बार ऐसे मामलों को फेस कर रहे हैं, वह भी यंग एज में ब्रेन स्ट्रोक के मामलों से काफी हैरान हैं।इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल बताते हैं कि अगर ब्लड प्रेशर अचानक से बढ़ जाता है, तो धमनियों में खून का थक्का बनने लगता है। इसे ब्रेन स्ट्रोक कहा जाता है।खून का थक्का बनने के साथ अगर ब्रेन की धमनियां कमजोर होती हैं तो नसें भी फट जाती है। इसे ब्रेन हैमरेज कहा जाता है।जब भी अचानक से ब्लड प्रेशर बढ़ता है तो शरीर में रक्त संचार तेज हो जाता है। ऐसे में दिमाग की कमजोर और लूज नसों का खून की रफ्तार से फटने का खतरा बढ़ जाता है। अक्सर देखा जाता है कि स्ट्रोक के ज्यादातर मामले क्लॉटिंग के होते हैं, लेकिन अभी हैमरेज के भी मामले बढ़ गए हैं।हाल ही में हुए एक स्टडी में पाया गया है कि कोरोना वर्किंग मेमोरी फंक्शनिंग को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है. लेकिन यह समस्या सिर्फ 25 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को हो सकती है. रिजल्ट बताते हैं कि कोरोना संक्रमण के बाद मेमोरी ठीक से काम कर सकती है लेकिन जिन लोगों के साथ लक्षण जारी हैं उनके मेमोरी फंक्शन करने में कठिनाई हो सकती है.वर्किंग मेमोरी शॉर्ट टर्म मेमोरी का एक रूप है जो हमें समस्याओं को हल करने, पढ़ने या बातचीत करने जैसे कामों को करते समय जानकारी को स्टोर करने और फिर हासिल करने में मदद करता है, इसलिए बिगड़ा हुआ वर्किंग मेमोरी फंक्शनिंग किसी व्यक्ति के दैनिक जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.