कहने को तो हम डिजिटल भारत में है। लेकिन आज भी लगभग आधी आबादी इंटरनेट के पहुंच से दूर हैं।
या आप यूँ कह लीजिए कि भारत में इंटरनेट की वृद्धि लगभग स्थिर हो गई है। रिपोर्ट तो कुछ ऐसा ही कह रहे है। टेलिकॉम रेगुलेटर ट्राई के डाटा से यह जानकारी मिली है की पिछले दो साल से भारत में ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या एक ही स्तर पर बनी हुई है।यानी कि साल 2021 में देश में इंटरनेट सब्सक्राइबर्स में 1 फीसदी से भी कम की बढोरती हुई है।
एक्सपर्ट का मानना है कि ऐसा स्मार्टफोन और ब्रॉडबैंड की महंगाई की वजह से है। यानी स्मार्टफोन महंगे होने के चलते, कम आय वर्ग के लोग मोबाइल नहीं खरीद पा रहे हैं और स्मार्टफोन न खरीद पाने के चलते वे इंटरनेट से दूर हैं।
भारत में केंद्र और राज्य सरकारें जहां ज्यादातर सरकारी योजनाओं को डिजिटल बनाए जाने पर जोर दे रही हैं, सरकार ने बैंकिंग, राशन, पढ़ाई, कमाई, स्वास्थ्य और रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी कई योजनाओं को लगभग ऑनलाइन बना दिया है। लेकिन भारत में अब भी करीब आधी आबादी के पास ऐसा इंटरनेट कनेक्शन नहीं है।
बिना डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर कैसे मिले लाभ
जानकार कहते हैं कि सरकारों की ओर से डिजिटलाइजेशन के ज्यादातर फैसले प्रक्रिया को तेज करने, भ्रष्टाचार को कम करने और प्रक्रिया में आने वाले खर्च को कम करने का हवाला देकर लिए जाते हैं। लेकिन इस दौरान जिन लोगों पर डिजिटलाइजेशन का फर्क पड़ना होता है, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।
ट्राई के आंकड़ों की मानें तो जुलाई 2021 के अंत तक भारत में कुल 80 करोड़ से कुछ ज्यादा इंटरनेट सब्सक्रिप्शन थे। जाहिर है इनमें से कई मामलों में एक ही व्यक्ति के पास एक से ज्यादा इंटरनेट सब्सक्रिप्शन रहे होंगे।जबकि वर्ल्डबैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जनसंख्या 141 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है यानी अब भी भारत में करोड़ों लोग इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं।
जितना लाभ नहीं उससे ज्यादा का खर्च
ऐसी परिस्थितियों में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए बहुत से लोगों को अन्य लोगों की या इंटरनेट कैफे की मदद लेनी पड़ती है। कई बार ऐसे मामलों में जिन लोगों को सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलता भी है, उन सेवाओं को पाने के लिए वो जितना पैसा खर्च कर देते हैं, वह सुविधा की कीमत से ज्यादा होता है। ऐसे में सरकार को सोचना होगा कि सरकारी स्कीमों का डिजिटलाइजेशन कहीं लोगों को सुविधाओं का लाभ देने के बजाए, उन्हें लाभ से वंचित रखने वाला न बन जाए।
इंटरनेट तक पहुंच के मामले में दूसरी चुनौतियां भी हैं
सरकार भले ही हर गांव तक बिजली पहुंचाने का दावा करती हो लेकिन अभी कई परिवारों तक बिजली की पहुंच नहीं है और ऐसे में इंटरनेट की उपलब्धता मुश्किल ही लगती है. सरकार को पहले देश की सच्चाईयों को स्वीकार करना होगा, क्योंकि ऐसा किए बिना उचित इंफ्रास्ट्रक्चर की प्लानिंग करना मुश्किल होगा।
कोरोना काल में भी डिजिटल शिक्षा को लेकर काफी बातें हुई थीं लेकिन आंकड़े उन बातों से मेल नहीं खाते। जहां 2016 से 2020 तक इंटरनेट प्रसार में दोहरे अंकों में बढ़ोतरी हुई, वहीं 2020 में यह 4 फीसदी रही और उसके बाद से 1 फीसदी से भी कम है। ऐसे में जहां तमाम इंटरनेट आधारित गतिविधियों के चलते इंटरनेट का प्रसार बढ़ना चाहिए था, वो और सिकुड़ता दिख रहा है। यानी ऐसे तमाम लोग इस दौरान प्रक्रिया से कटे रहे, जिनके पास इंटरनेट नहीं था।