छत्रपति संभाजी महाराज का राज्याभिषेक आज ही के दिन 16 जनवरी को हुआ था

इतिहास.छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम की गाथाएं विश्व भर में प्रसिद्ध हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि छत्रपति शिवाजी की तरह उनके पुत्र छत्रपति संभाजी ने भी अपना जीवन देश और हिंदुत्व के लिए समर्पित कर दिया था।छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद छत्रपति संभाजी महाराज का राज्याभिषेक आज ही के दिन 16 जनवरी को हुआ था.
छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के महान शासक छत्रपति शिवाजी के सबसे बड़े पुत्र थे। संभाजी का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर के किले में हुआ था।शिवाजी महाराज को संभाजी राजे से अपार प्रेम था। संभाजी जब दो साल के थे, तब उनकी मां सईबाई की अकाल मृत्यु हो गई। उसके बाद राजमाता जीजाबाई (जिजाऊ) ने उनकी देखभाल की। जब छत्रपति शिवाजी महाराज आगरा अभियान पर निकले तो वे संभाजी राजे को भी साथ ले गए थे। उस समय संभाजी राजे सिर्फ नौ साल के थे। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज की कई बातों को करीब से देखा था। शिवाजी महाराज के आगरा छोड़ने के बाद उन्होंने संभाजी महाराज को मथुरा में रखा। इस दौरान संभाजी राजे की मौत की अफवाह फैलाकर छत्रपति शिवाजी को सकुशल निकाला गया। 20 नवम्बर 1666 को संभाजी रायगढ़ पहुंच गए। आगरा से रायगढ़ लौटते वक्त संभाजी राजे की चतुराई की कई कहानियां मशहूर हैं।

उस समय मराठों के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगज़ेब था। बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही। सम्भाजी राजे अपनी शौर्यता के लिये प्रसिद्ध थे।

सम्भाजी राजे ने अपने कम समय के शासन काल में 210 युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर औरंगज़ेब ने कसम खायी थी के जब तक छत्रपती सम्भाजीराजे पकड़े नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा। 11 मार्च 1689 को औरंगजेब ने छत्रपती सम्भाजी महाराज की बड़ी क्रूरता के साथ हत्या कर दी।

सम्भाजी का बचपन बहुत कठिनाईयों और विषम परिस्थितियों से गुजरा था. संभाजी की सौतेली माता सोयराबाई की मंशा अपने पुत्र राजाराम को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने की थी. सोयराबाई के कारण संभाजी और छत्रपति शिवाजी के मध्य सम्बन्ध ख़राब होने लगे थे. संभाजी ने कई मौकों पर अपनी बहादुरी भी दिखाई, लेकिन शिवाजी और उनके परिवार को संभाजी पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. ऐसे में एक बार शिवाजी ने संभाजी को सजा भी दी, लेकिन संभाजी भाग निकले और जाकर मुगलों से मिल गए. यह समय शिवाजी के लिए सबसे मुश्किल समय था. संभाजी ने बाद में जब मुगलो की हिन्दुओ के प्रति नृशंसता देखी, तो उन्होंने मुगलों का साथ छोड़ दिया, उन्हे अपनी गलती का अहसास हुआ और शिवाजी के पास वापिस माफ़ी मांगने लौट आये.

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