बालाजी न्यूज़: बांग्लादेश में बीते कुछ महीनों से, ईंधन और गैस की क़ीमतों में वृद्धि का देश के ज्यादातर उद्योगों और उत्पादन पर असर नज़र आने लगा है। लगातार ऐसी स्थिति रही तो बांग्ला देश का हाल श्रीलंका और पाकिस्तान जैसा होने में देर नहीं लगेगी ।
आर्थिक मंदी का तूफान पहले श्रीलंका फिर पाकिस्तान और अब बांग्लादेश तक पहुँच चुका है। बांग्लादेश बैंक ने बीते साल आयात पर कई पाबंदियाँ लगा दी थीं। जिसका कारण पर्याप्त डॉलर नहीं होना बताया जा रहा है। इसी वजह से आयात करने वाले बांग्लादेशी उद्दमि सबसे ज़्यादा मुसीबत में हैं। बांग्लादेश खाद्यान्नों से लेकर कल-पुर्ज़ों तक ज़्यादातर वस्तुओं का आयात करता है। इन उद्योगों के लिए कच्चे माल की ख़रीदारी बाहर अन्य देशों से करनी पड़ती है। इसके साथ ही ईंधन यानी पेट्रोल और डीजल की क़ीमतें बढ़ने के कारण परिवहन और दूसरे ख़र्च बढ़ गए हैं। हाल में व्यावसायिक गैस की क़ीमतें बढ़ने के कारण कारखानों की उत्पादन लागत भी बढ़ी है। इस तरह से बबांग्लादेश पर महंगाई की दोहरी मार पर रही है। एक ओर तो देश में इन वस्तुओं की क़ीमतें बढ़ रही हैं और दूसरी ओर कच्चे माल के आयात में दिक़्क़त के कारण उत्पादन जारी रखना भी उनके लिए मुश्किल हो गया है।
सअमान्य जनजीवन की सभी समान हो सकते है महंगे
बांग्लादेश अपने ज़रूरी दवाओं में से 98 फ़ीसदी देश में ही बनाता है ।रेडिमेड कपड़ा उद्योग के बाद दवा उद्योग ही बांग्लादेश का मुख्य निर्यात उत्पाद है। लेकिन इस उद्योग के लिए ज़रूरी कच्चे माल का 80 से 85 फ़ीसदी हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल इस उद्योग के लिए 1। 3 बिलियन डॉलर के कच्चे माल का आयात किया जाता है।
मीडिया रिपोर्ट के औसरदवा बनाने वाली एक कंपनी कास्मो फ़ार्मास्यूटिकल्स के निदेशक मोहम्मद अली ने बताया की,कई कंपनियाँ समय से कच्चे माल का आयात नहीं कर पा रही हैं। ”
उन्होंने कहा, “100 फ़ीसदी तक मार्जिन देने के बावजूद लेटर ऑफ़ क्रेडिट (एलओसी) मिलना मुश्किल हो गया है। नतीजतन कई कंपनियों में दवाओं का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ” कच्चे माल की क़ीमतें बढ़ने के कारण बीते साल बांग्लादेश में दवाओं की क़ीमतें बढ़ी थी।
अब व्यापारियों ने संकेत दिया है कि कच्चे माल की क़ीमतों में वृद्धि, गैस और संचालन ख़र्च में वृद्धि और डॉलर की विनिमय दर के कारण फिर एक बार दवाओं की क़ीमतें बढ़ सकती हैं।
दवा उद्योग की तरह ही देश के एक अन्य बड़े उद्योग सीमेंट पर भी असर पड़ा है।
गैस के संकट के कारण वे लोग ख़ुद भी बिजली का उत्पादन करने में समर्थ नहीं हैं।
इसके अलावा गैस और ईंधन की क़ीमतें बढ़ने के कारण उनकी उत्पादन लागत बढ़ गई है।
पहले जहां कच्चा माल ख़रीदने के लिए 86-87 रुपए प्रति डालर की दर से एलओसी लिया जा रहा था। उसी दर से चीज़ों की बिक्री हुई थी। लेकिन अब एलओसी के निपटारे के लिए उनको प्रति डॉलर 106 से 112 रुपए तक भुगतान करना पड़ रहा है। इससे कई फ़ैक्टरी मालिक पूँजी की भारी कमी से जूझ रहे हैं।
बढ़ती कीमतों के साथ घाट रही है बिक्री
बांग्लादेश में वाहनों के इंजन से लेकर कृषि और निर्माण के क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले उपकरण, प्लास्टिक उत्पादों के सांचे, नट-बोल्ट और बेयरिंग जैसी ज़्यादातर चीज़ें स्थानीय तौर पर ही बनाई जाती हैं। लेकिन बीते एक साल से दूसरे उद्योगों की तरह यह उद्योग भी संकट के दौर से गुज़र रहा है।