आगामी चुनाव के लेकर कांग्रेस को कुछ उम्मीदें थी। बजट 2023 पेश होने के बाद वो उम्मीदें भी धूमिल होती दिख रहीं है। राहुल गांधी के 150 दिनों के वनवास का फायदा भी कांग्रेस को नजर नहीं आ रहा है। राहुल गांधी के 150 दिनों की यात्रा का रिजल्ट आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजों से ही आंकना उचित होगा । फिर भी अगर इन 150 दिनों पर गौर करें तो कांग्रेस जनता के दिलों में जगह बनाने में असफल ही रही है।
महंगाई की बात करें तो रूस से दोस्ती ने इस मामले को कंट्रोल में कर रखा है। रूस से सस्ता तेल मिल जाने बाद भले ही पेट्रोल डीजल की कीमत कम नहीं हुई है, लेकिन पिछले 3 महीनों से कीमत में स्थिरता जरूर बनी हुई है। संभवतः यह स्थिरता आनेवाले चुनाव तक बरकरार रहेगी. चुनाव के बाद सरकार जिसकी भी बने, पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ना तय है। इस तरह से 2024 लोकसभा चुनाव के बाद महंगाई चरम पर होगी. खैर इतनी समझ पार्टियों के नेताओ को नहीं होती है इसलिए वो इसे मुद्दा नहीं बना पाएंगे। वैसे भी फ्यूचर और संभावनाओं को मुद्दा बना कर चुनाव लड़ना कांग्रेस और उनके साथी पार्टियों को कहां आता है।
अब मुद्दा सिर्फ धर्म और राष्ट्रवाद
बेरोजगारी का मुद्दा तो राष्ट्रवाद से सामने नतमस्तक हो जाता है। अगर वाकई में पूरे विपक्ष ने बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर खेल किया होता तो कई राज्यों में खेला हो चुका होता। लेकिन हाल ही में तालिबान और यूक्रेन के हालात ने बता दिया कि महंगाई और बेरोजगारी से बड़ा धर्म और राष्ट्रवाद का मुद्दा है। तालिबान और यूक्रेन में क्या हुआ आप सबों से छिपा नहीं है। अब यही दो मुद्दे राष्ट्रवाद और धर्म भाजपा को 2024 में लगातार तीसरी बार सत्ता दिलवाएंगे
साधु संत Vs विपक्ष
भाजपा के साथ पूरे भारत के संत समाज हिंदुओं को एकजुट करते दिख रहे है चाहें वो धीरेंद्र शास्त्री हों या दीपंकर सनातनी। सभी साधु संत एक प्लेटफॉर्म पर आकर एकजुट हो गए हैं। ऐसा लगता है कि अब आरएसएस का कार्यभार इन साधु और संतो के कंधों पर आ गया है। वैसे भी 2024 को लेकर संघ की कुछ खास तैयारी अभी नहीं दिख रही है।
मुद्दा बनाने की कोशिश जारी
कांग्रेस और उनके साथी दलों के पास अब कोई मुद्दा बचा नहीं, ऐसे में एक नया मुद्दा बनाया जाना जरूरी हो जाता है। यानी कि वही पुरानी नीति, हिंदुओं को एकजुट होने मत दो। हिंदुओं को जाति में बांटे रखो। उन्हें आपस में लड़ने दो। अगर एकजुट हो गए तो कैसे चलेगी राजनीति। “फुट डालो और शासन करो ” कि राजनीति पर फोकस किया जाना शुरू हो गया है। खैर अब इससे फर्क पड़ने वाला नहीं हैं।
इन नेताओं को और अध्यन करने की जरूरत
ऐसे उल्टे पलटे बयानबाजी करने वाले नेताओं को अभी और अध्ययन करने की जरूरत है। चाहे वो गहलौत हों या मौर्य उनकी बुद्धिमत्ता का लेवल से ऊपर उठ चुका है यह हिन्दू समाज।
शायद ही इन नेताओं को पता हो कि महर्षि वाल्मीकि, संत रविदास, कबीरदास, कौन थे, केवट कौन थे, अनुसुइया कौन थी। ये तो कुछ पुराने उदाहरण हैं । आधुनिक इतिहास कि बात करें तो संविधान के निर्माता कहे जाने वाले अम्बेडकर को शिक्षा दीक्षा किसने दिलवाई थी। यह भी बीती बातें है। आप वर्तमान में आइये PM से लेकर कई राज्यों के CM तक बहुत यहां तक कि भारत के राष्ट्रपति कौन हैं। किस जाति से संबंध रखते हैं।
क्या राहुल से खुद कांग्रेस भी परेशान है!
क्या होता है जब आपके किसी वाइटल अंग रोग से ग्रसित हो जाये या जबरदस्त रूप से घायल हो जाये। तब आप न तो उस अंग को हटा सकते हैं और न ही उस अंग के साथ ठीक से जिंदगी बिता सकते हैं। ऐसा ही कुछ हाल वर्तमान में कांग्रेस के साथ दिख रही है। 150 दिनों के भारत जोड़ो यात्रा में खुद को मार देने, पांडवो ने GST.., ठंड से डर…, देश पुजारियों का नहीं.. आदि कई एंटरटेनमेंट से भरपूर बयान दिए। इन बयानबाजी से कांग्रेस के बाकी नेताओं की क्या हाल हो रही होगी वो तो आप ऊपर के उदाहरण से समझ रहे होंगे। इससे कांग्रेस को कितना फायदा होने वाला है जानने के लिए 2024 तक का इंतजार तो करना ही पड़ेगा।
मुझे तो डर लग रहा है
मुझे डर है की अगर कांग्रेस सरकार आई तो जम्मू कश्मीर में तो धारा 370 फिरसे लगना तय है ही ऐसा राहुलगांधी कई बार बोल चुके है तो क्या वे राम मंदिर भी फिरसे तुड़वा देंगे… जबाब का इंतजार रहेगा मुझे।
जाते जाते बतादूँ की जेलेसकी जो यूक्रेन के नेता है वो भी एक कॉमेडियन हैं।
डिस्क्लेमर: हमारी नियत किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष को दुखी करना नहीं है। फिर भी यदि ऐसा होता है तो मैं क्या करूँ। मैं भी तो उनके फालतू के विवादित भाषणों से दुखी होता हूँ लेकिन कुछ कर नहीं पाता।