क्या वक्फ बोर्ड का गठन से ही शुरू हुआ भारत के इस्लामीकरण का एजेंडा ?

दुनियां के किसी भी इस्लामिक देश में वक्फ बोर्ड जैसी या इससे मिलती जुलती कोई संस्था नहीं है। यह सिर्फ भारत में है और भारत धर्म निरपेक्ष है। क्या वाकई में यह एजेंडा के तहत किया गया है।

वक्फ बोर्ड के जन्म की कहानी आपको जरूर जानना चाहिए

वक्फ बोर्ड के जन्म की कहानी शुरू होई है 1950 में हुए नेहरू – लियाकत समझौते से। इस समझौता में तय हुआ था कि आजादी और भारत पाकिस्तान बटवारे के बाद विस्थापितों की संपत्तियों पर विस्थापितों का ही अधिकार बना रहेगा। वो अपनी संपत्तियों को बेच सकेंगे। लेकिन पाकिस्तान में हिंदुओं की संपत्ति का क्या हश्र हुआ यह हम और आप से छुपा नहीं है। लेकिन भारत में मुसलमानों की संपत्तियों को न तो आम नागरिक और न ही सरकार किसी ने भी हाथ तक नहीं लगाया। कोंग्रेस सरकार ने सभी संपत्तियों का मालिक वक्फ बोर्ड को बना दिया गया।

यानी कि 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन कर विस्थापित मुसलमानों की सभी संपत्तियां इस बोर्ड के दे दी गई।

1995 के संशोधन से वक्फ बोर्ड को बेलगाम बना दिया

वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया। इस संशोधन में  नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं।
वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी।
वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा।

सबसे बड़ी बात यह है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।


यह तो रही इसकी जन्म की कहानी आगे हम इसकी करतूतों के विषय में भी चर्चा करेंगे। कैसे वक्फ बोर्ड की में में दिन दूना रात चैगुना इजाफा हो रहा है।

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