क्या माफिया अतीक और अशरफ को दी जाएगी श्रद्धांजलि? क्या कहते हैं नेतागण

विधानसभा में कार्य मंत्रणा समिति करेगी विचार

लखनऊ: मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के एक पूर्व वरिष्ठ विधायक का कहना है कि, “एक श्रद्धांजलि संदर्भ, जो सदन के दिवंगत सदस्यों के लिए किया जाता है, संसदीय परंपरा का हिस्सा है। न तो संविधान में और न ही किसी कानून में इसका उल्लेख है। यह विशुद्ध रूप से संसदीय परंपराओं के हिस्से के रूप में किया जाता है।”

वहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा है कि गैंगस्टर से नेता बने पूर्व सांसद और पूर्व विधायक अतीक अहमद और उसके भाई पूर्व विधायक अशरफ को विधानसभा के अगले सत्र में श्रद्धांजलि देने के विषय पर कार्य मंत्रणा समिति विचार करेगी।

पारंपरिक रूप से सदन के प्रत्येक सत्र की शुरुआत के बाद दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि दी जाती है। हालांकि, पूर्व विधायक और पूर्व सांसद अतीक अहमद को अपहरण के एक मामले में दोषी ठहराया गया था। राज्य में विधानमंडल के दोनों सत्रों की मानसून सत्र की शुरुआत होगी, लेकिन अभी इसके लिए कोई तारीख तय नहीं की गई है।

अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से 5 बार विधायक और 2004 से 2009 तक एक बार फूलपुर से लोकसभा सदस्य चुना गया। वह इलाहाबाद पश्चिम से 3 बार निर्दलीय विधायक था। सन् 1996 में वह सपा के टिकट पर चुना गया, जबकि 2002 में उसने अपना दल के टिकट पर सीट बरकरार रखी। बहुजन समाज पार्टी के तत्कालीन विधायक राजू पाल की हत्या के बाद अतीक के भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ 2005 में सपा के टिकट पर उसी सीट से विधायक बना था।

‘अतीक और अशरफ को श्रद्धांजलि देने विषय पर कार्य मंत्रणा समिति करेगी फैसला’

क्या अतीक और उसके भाई अशरफ को श्रद्धांजलि दी जाएगी, इस सवाल पर महाना ने कहा कि मामले का फैसला सदन की कार्य मंत्रणा समिति करेगी। समिति की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष करते हैं।

संवैधानिक विषयों के विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप ने कहा कि इस मामले पर अध्यक्ष को ही फैसला करना है।

अतीक अहमद पर 100 से अधिक मामले थे दर्ज

लोकसभा की पूर्व महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव ने कहा कि, “पूर्व सांसदों और सांसदों में किसी की मृत्यु के बारे में कोई सूचना मिलती है, तो सदन में, सत्र में या अगले सत्र में, एक शोक सन्दर्भ दिया जाता है।” उन्होंने कहा, ”मेरे सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया है। (कोई सांसद या पूर्व सांसद जिसे सजा सुनाई गई हो और उसे श्रद्धांजलि दी गई हो)।” 28 मार्च को प्रयागराज में एक सांसद-विधायक अदालत ने अतीक अहमद और दो अन्य को 2006 के उमेश पाल अपहरण मामले में दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अहमद के भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ और 6 अन्य को अदालत ने बरी कर दिया। यह अतीक अहमद की पहली सजा थी, हालांकि उसके खिलाफ 100 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे।

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