आरोपित एजेंसी को क्यों काम देना चाहता है विभाग, कोविद टेस्ट घोटाले का आरोपी है एजेंसी
जिस एजेंसी पर है कोविड टेस्ट के घोटाले का आरोप, उसे ही टीबी जांच का काम देने के लिए विभाग कर रहा है जोर आजमाइश
By रंजीत कुमार
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश से टीबी रोग को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए 2025 तक का लक्ष्य निर्धारित किया है। हालांकि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने वर्ल्ड से TB खत्म करने का लक्ष्य वर्ष 2035 रखा है।
झारखंड राज्य के स्वास्थ्य विभाग के रवैये से लगता नहीं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई झारखंड का स्वास्थ्य विभाग प्रधानमन्त्री के आह्वान पर गंभीर है।
क्या होना है इस टीबी उन्मूलन अभियान में
2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सरकार को पिछड़े और निर्धन आबादी के बीच टीबी के मामलो को तलाश करना, इनकी जांच करना और फिर उसका उपचार करना है। टीबी के मामलो को ट्रैक करने के लिए ऑनलाइन नि-क्षय पोर्टल भी बनाया गया है। इसी दिशा भी सभी राज्य सरकारें काम कर रहीं है।
चार महीने में चार कदम भी नहीं चल सका है राज्य का स्वास्थ्य विभाग
ऐसा प्रतीत होता हूं कि, झारखंड में नेता अधिकारी और दलालों का ऐसा सिंडिकेट हावी है, जहां जनहित पीछे रह जाते है और योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।
सरकार ने टीबी उन्मूलन के लिए NTEP (National TB Elimination Programme) के तहत IGRA Test of Latent TB की जांच के लिए निविदा निकाली गई थी, जिसकी अंतिम तिथि थी 23 दिसंबर 2022। निविदा में तीन कम्पनियों ने अपने अपने कागजात प्रस्तुत किये जिसमें JITM, बायोजेन लैब्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और मैक्रोपरेक्सिस लैब्स हैं। इसके बाद 27 जनवरी 2023 को कार्यालय में कागज सत्यापन में JITM असफल रहा। वहीं निविदा में भाग लेने वाले दो अन्य एजेंसी Biogene Labs India Pvt Ltd और Micropraxis Labs के कागजात सही पाए गए साथ हि ये सभी मानकों पर भी खड़ी उतरी। यही बात कुछ नेता व अधिकारियों को पसंद नहीं आई। संभवतः उनके पसंदीदा कम्पनी तो प्रथम चरण में ही निविदा से बाहर हो गए। बस यहीं से शुरू हुआ JITM को सफल बनाने कुचक्र।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि निविदा में असफल होने के बाद भी किस आधार पर JITM के कागजातो को सक्षम समिति के समक्ष रखने एवं उसपर निर्णय रखने की बात की गई। इस सक्षम समिति के अध्यक्ष Procument Corporation के प्रबंध निदेशक होते है। 22 फरवरी को कमिटी के बैठक का निर्धारित किया गया। बैठक के एक दिन पहले ही कमिटी के अध्यक्ष अभिजीत सिन्हा का तबादला दुमका डीडीसी के रूप में किया जाना मामले को और भी संदेहास्पद बनाता है।
सूत्र बताते है इस मामले को लेकर दो बार गोपनीय मीटिंग की गई है। इसी बीच रामनवमी के समय JITM के पदाधिकारी के दिल्ली से रांची आने और स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से मुलाकात की भी सूचना है। इसके बाद से विभाग रेस है कि कैसे चहेते कम्पनी को लाभ पहुंचाया जाए।
इन्हीं सब कारणों से ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग में अंदर ही अंदर कुछ खिचड़ी पक रही है। हो न हो विभाग ने मन बना लिया गया था कि काम JITM को ही देना है।
बता दे JITM वह एजेंसी है जिसपर कॉविड टेस्ट में गड़बड़ी के गंभीर आरोप लगे थे। होना तो चाहिए था JITM पर मामला दर्ज कर जांच किया जाता। लेकिन यहां उसे उपकृत करने की तैयारी है।
एजेंसी के चयन होने के बाद भी रुक है काम
टीबी के मामलो की तलाश के लिए Patient Provider Support Agency का चयन किया जा चुका है। इसके बावजूद फाइल को एक टेबल से दूसरे टेबल तक घुमाया जा रहा है। जिसकी वजह को समझा जा सकता है।
बड़ा सवाल यह है कि जिस राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को संचालित करने वाली व्यवस्था ही टीबी ग्रस्त हो वह राज्य अपने निवासियों को कैसे टीबी मुक्त करेगा?