-अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
बचपन वह दौर होता है जब मन और मस्तिष्क एक खाली कैनवास की तरह होते हैं, जिस पर हम किसी भी रंग से तस्वीर उकेर सकते हैं। इसी समय में बच्चे अपने आसपास की दुनिया को समझते हैं, नई चीजें सीखते हैं और नई-नई आकांक्षाओं को आकार देते हैं। यदि इस समय में उनकी रुचियों और क्षमताओं को पहचानकर एक लक्ष्य तय किया जाए और उसी के हिसाब से उनका मार्गदर्शन किया जाए, तो उनका भविष्य सुनहरा बनाया जा सकता है। वहीं, अगर बचपन से ही इस पर ध्यान न दिया जाए तो भटकाव की स्थिति बनी रहेगी, जो आगे चलकर कई परेशानियों का कारण बन सकती है।
जिस तरह एक चित्रकार चित्र बनाने से पहले यह तय करता है कि वह क्या बनाना चाहता है, उसी के अनुसार उचित आकार और रंगों का उपयोग करता है, वैसे ही बचपन के खाली कैनवास पर यह तय करना आवश्यक है कि हम बच्चे के जीवन को कौन सा रूप देना चाहते हैं। सही समय पर लक्ष्य तय कर, उसे पाने के लिए प्रयास किया जाए तो निस्संदेह हम बच्चे के जीवन को एक खूबसूरत कलाकृति बना सकते हैं। बस आवश्यकता है सही समय पर सही दिशा में प्रयास करने की।
बच्चों के सपनों को समझना है जरूरी
मान लीजिए कि किसी बच्चे को संगीत से प्यार है। वह हर समय गुनगुनाता रहता है और किसी भी चीज़ को वाद्य यंत्र की तरह बजाने की कोशिश करता रहता है। अगर उसकी इस प्रतिभा को पहचानकर उसे बचपन से ही संगीत की शिक्षा दिलाई जाए, उसे इसके लिए प्रेरित किया जाए, तो एक दिन वह सफल संगीतकार बन सकता है। वहीं, अगर उसकी इस रुचि को नजरअंदाज कर दिया जाए, तो संभव है कि उसकी यह प्रतिभा कहीं दबकर रह जाएगी।
बचपन से करियर की योजना बनाने का एक बड़ा लाभ यह है कि इससे समय और संसाधनों का सही उपयोग होता है। बच्चा अनावश्यक भटकाव से बचता है और अपने लक्ष्य की ओर केंद्रित रहता है। आज के दौर में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है। यदि बच्चा बचपन से ही अपने क्षेत्र में मेहनत करे, तो आगे चलकर वह सफलता की सीढ़ियां तेजी से चढ़ सकता है। जब बच्चे की रुचि और क्षमता को बचपन से ही पहचाना जाता है, तो उसे अपनी प्रतिभा को निखारने का भरपूर मौका मिलता है। करियर की सही योजना से वह अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर सकता है और उत्कृष्टता की ओर बढ़ सकता है। इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है। उसे पता होता है कि वह क्या और कैसे करना चाहता है। यह आत्मविश्वास उसकी सफलता का मूल आधार बन सकता है।
माता-पिता की अहम भूमिका
बच्चे के करियर की योजना बनाने में माता-पिता की सबसे अहम भूमिका होती है। यह आवश्यक है कि वे अपने बच्चे की रुचियों, क्षमताओं और सपनों को समझकर उसे सही दिशा में प्रेरित करें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपने सपनों को बच्चे पर थोपें क्योंकि हर बच्चे की अपनी अलग पहचान और रुचियां होती हैं। अपने अधूरे सपनों को बच्चे पर थोपने से उसका आत्मविश्वास कम हो सकता है और वह खुद को हमेशा किसी और की उम्मीदों को पूरा करने की दौड़ में फंसा हुआ महसूस कर सकता है। इससे बेहतर है बच्चे के सपनों को पहचानकर उन्हें साकार करने में उसकी मदद करें। इसके लिए सबसे पहले यह समझना होगा कि बच्चा क्या करना पसंद करता है, उसे किस चीज़ में खुशी मिलती है, इन बातों पर गौर करें।
उदाहरण के लिए, यदि बच्चा खेलों में रुचि रखता है, तो उसे खेल एकेडमी में दाखिला दिलाने का प्रयास करें। अगर उसे कला में रुचि है, तो उसे आर्ट क्लास में भेजें। यह जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों को समझें और उन्हें उन क्षेत्रों में आगे बढ़ने दें जहां उनकी वास्तविक रुचि हो।
शिक्षक और संगत का प्रभाव
माता-पिता के अलावा, शिक्षक और दोस्तों का भी बच्चे के करियर की योजना में महत्वपूर्ण योगदान होता है। बच्चे की संगत का उसके विचारों और रुचियों पर गहरा असर पड़ता है। जिस तरह के दोस्तों के बीच बच्चा समय बिताता है, वही उसकी रुचियों और लक्ष्य पर भी असर डालते हैं। इसके अलावा, शिक्षक बच्चों को वास्तविक दुनिया से अवगत कराने और करियर के संभावित विकल्पों, चुनौतियों और अवसरों के बारे में जानकारी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शिक्षक न केवल बच्चों की शैक्षिक योग्यता को निखारते हैं, बल्कि उन्हें करियर से संबंधित निर्णय लेने में भी मदद करते हैं। बच्चों को सही जानकारी देकर उन्हें अपने फैसले समझदारी से लेने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। एक अच्छे शिक्षक की तरह, माता-पिता को भी बच्चे को शुरु से ही सही मार्गदर्शन देना चाहिए ताकि वह अपने सपनों की दिशा में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सके।
बचपन से ही बच्चों की रुचियों और क्षमताओं को पहचानकर उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन देना आवश्यक है। माता-पिता और शिक्षक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सही समय पर किया गया प्रयास ही बच्चों के सपनों को उड़ान देने और उन्हें भविष्य में सफलता की ओर ले जाने में मदद करता है।