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जब 3 बहनों ने तानाशाह के नाक में कर दिया दम, निर्ममता से हुई हत्या: वो कहानी, जिससे उठी ‘उत्पीड़ित महिलाओं’ की आवाज

25/11/2022
in Offbits, Opinion
जब 3 बहनों ने तानाशाह के नाक में कर दिया दम, निर्ममता से हुई हत्या: वो कहानी, जिससे उठी ‘उत्पीड़ित महिलाओं’ की आवाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है, “नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है”। जरूरत है कि हम अपने मानस में उपरोक्त श्लोक के भाव को धारण करें और नारी सशक्तिकरण के मार्ग को प्रशस्त करें।

महिलाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए पूरे विश्व में महिलाओं के प्रति हिंसा, शोषण एवं उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के उन्मूलन हेतु संयुक्त राष्ट्र के द्वारा घोषित ‘इंटरनेशनल डे फॉर द एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट वीमेन’ (International Day for the Elimination of Violence against Women) हर वर्ष 25 नवम्बर को मनाया जाता है।

महिलाओं एवं लड़कियों के खिलाफ हिंसा किसी एक या दो देश कि कहानी नहीं है, बल्कि विश्वव्यापी है। माना जाता है कि पूरे विश्व में हर तीन में से एक महिला किसी न किसी तरह के उत्पीड़न/ हिंसा का शिकार होती है। समय की माँग है कि हम एक जागरूक नागरिक की भांति आत्ममंथन करें कि आखिर महिलाओं की स्थिति अभी तक ऐसी क्यों बनी हुई है? हमारे समाज में आखिर क्यूँ इनकी सुरक्षा का प्रश्न सदैव उठ खड़ा होता है?

3 बहनों ने किया तानाशाह के नाक में दम, आज ईरान में हो रहा विरोध

अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो पता चलता है कि क्यों संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा इस दिन को ‘एक अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के रूप में घोषित किया गया। बात उस समय की है जब डोमिनिकन गणराज्य के शासक राफेल ट्रुजिलो की तानाशाही अपने चरम पर थी, जिसका पुरजोर विरोध तीन मिराबल बहनों द्वारा किया गया था, जो वहाँ की राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। इनका नाम पैट्रिया मर्सिडीज मिराबल, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा मिराबल तथा एंटोनिया मारिया टेरेसा मिराबल था।

इनके विरोध के बढ़ते स्वर को देखते हुए तानाशाह ट्रुजिलो द्वारा 25 नवंबर 1960 को इन तीनों बहनों की निर्मम हत्या करवा दी गई। चूँकि इन बहनों का बलिदान बेकार न जाए एवं इससे प्रेरित महिला वर्ग के मनोबल को और संबल मिल सके, वर्ष 1981 से महिला अधिकारों के प्रबल समर्थकों द्वारा इनके स्मृति के रूप में इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई। आगे चलकर 7 फरवरी 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 54/134 को अपनाया और आधिकारिक तौर पर 25 नवंबर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया। आज के परिदृश्य की बात करें तो एक साल पूर्व अफ़ग़ानिस्तान में हुए तख्तापलट वाली तालिबान सरकार में भी डोमिनिकन शासक राफेल ट्रुजिलो की तानाशाही शासन का रुख देखने को मिलता है, जहाँ आए दिन महिलाओं एवं लड़कियों को प्रताड़ित किया जा रहा है और उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है। परंतु वहाँ की महिलाएँ एवं लड़कियाँ भी हार नहीं मान रही हैं। वे लगातार तालिबान की तानाशाही सरकार के महिला विरोधी सोच एवं उनकी नीतियों का पुरजोर विरोध कर रही हैं।

हाल ही में, ईरान में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जहाँ कुछ महीने पहले महसा अमिनी नामक एक युवती की पुलिस हिरासत में मौत के बाद हिजाब समेत अन्य प्रतिबंधों के विरोध में वहाँ के महिला वर्ग ने आंदोलन छेड़ दिया जो कि थमने का नाम नहीं ले रहा है।

शारीरिक हिंसा और यौन उत्पीड़न सहती महिलाएँ

जगजाहिर है कि महिला का स्थान हर प्रकार से समाज में सबसे ऊपर होता है। इन्हें जग जननी कहते हैं। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि हिंसा से प्रताड़ित बहुतायत महिलाएँ एवं लड़कियाँ परिवार और समाज को देखते हुए प्रतिष्ठा और शर्म के कारण उन पर हो रही हिंसा को अभिव्यक्त नहीं कर पाती हैं। परंतु समाज का एक तबका अपनी पुरुषवादी एवं पित्तृसत्तात्मक सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहा है। फलतः महिलाएँ एवं लड़कियाँ आए दिन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रताड़ित होती आ रही हैं। और ये कोई नई घटना नहीं है।

यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर, अनुमानित 736 मिलियन महिलाओं में से लगभग तीन में से एक महिला अपने जीवन में कम से कम एक बार शारीरिक हिंसा या यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। इसमें 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की 30 प्रतिशत महिलाएँ शामिल हैं।
वर्ष 2020 में पूरे विश्व में लगभग 81,000 महिलाओं एवं लड़कियों की हत्याएँ हुई। इनमें से लगभग 47,000 (58 प्रतिशत) की मृत्यु एक अंतरंग साथी (इंटीमेट पार्टनर) या परिवार के किसी सदस्य के हाथों हुई। वैश्विक स्तर पर, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा निम्न और निम्न-मध्यम-आय वाले देशों को विषमतापूर्वक रूप से प्रभावित करती हैं।

बात जब हिंसा/ उत्पीड़न के स्वरूप की करते हैं तो यह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूप में हमारे समाज में विद्यमान है। महिला वर्ग पर हिंसा पब्लिक और प्राइवेट, हर जगह देखने एवं सुनने को मिलता है। इसमें शारीरिक हिंसा, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, व्याभिचार/ बलात्कार, नशीले पदार्थ के सेवन के लिए मजबूर करना, यौन हिंसा/ उत्पीड़न, मानव तस्करी, बाल विवाह, महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध इत्यादि शामिल है।

कोरोना में हुआ महिलाओं पर अत्याचार

पूरा विश्व जब कोरोना जैसे महामारी से त्रस्त था तब भी उस दौरान महिलाएँ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से घरेलू हिंसा से प्रभावित थीं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कोरोना काल के दौरान महिलाओं पर बढ़ रही हिंसा पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था, “लोगों को महिलाओं के महत्व को समझना होगा”। परंतु महिला वर्ग पर हिंसा आज तक नहीं रुका है, जो कि एक गम्भीर चिंता का विषय है।

यूएन द्वारा अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं ताकि महिलाओं एवं लड़कियों पर हो रहे किसी भी तरह के उत्पीड़न या हिंसा का उन्मूलन किया जा सके। यूएन का ‘यूनाइट अभियान’ (UNITE Campaign) इसी तरह के मज़बूत प्रयास का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस बात से कोई इनकार नही कर सकता कि हमारे समाज में व्याप्त असमानतावादी सोच नारी सशक्तिकरण के मार्ग में एक प्रमुख अवरोध है, चाहे इसे हम स्वीकार करें या ना करें। समाज में महिला की स्थिति प्रमुख है, और सदैव रहेगी। हम कब समझेंगे कि जिस परिवार एवं समाज में महिला वर्ग को उचित सम्मान नहीं मिलता है वह परिवार/ समाज गर्त की ओर जाता है। यहाँ एक श्लोक प्रासंगिक है-

“शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।”

अर्थात, जिस कुल या परिवार में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं, वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती हैं, वह कुल या परिवार सदैव फलता-फूलता और समृद्ध रहता है।

आखिर हम कब इस बात को समझेंगें कि महिलाएँ हैं तो हमारा अस्तित्व हैं, ये नहीं तो हमारा अस्तित्व नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है, “नारी सशक्तिकरण के बिना मानवता का विकास अधूरा है”। जरूरत है कि हम अपने मानस में उपरोक्त श्लोक के भाव को धारण करें और नारी सशक्तिकरण के मार्ग को प्रशस्त करें।

नोट: इस लेख को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के वरिष्ठ सलाहकार डॉ मुकेश कुमार श्रीवास्तव द्वारा लिखा गया है। लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं। यह लेख ऑप इंडिया के हिन्दी वेबसाइट पर प्रकाशित है ।

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