Sahara India: कभी स्कूटर पर बेचते थे नमकीन, कड़ी मेहनत और लगन से खड़ा किया दो लाख करोड़ का कारोबार

हम में से अधिकांश लोग अपनी कमाई के कुछ ना कुछ पैसा बचाकर सेविंग प्लान में निवेश करते हैं। देश भर के करोड़ों लोगों ने सहारा ग्रुप की कंपनियों में पैसा लगाया।

दो कुर्सी, एक स्कूटर और 2000 रुपये से सफर शुरू

बिहार के अररिया जिले के रहने वाले सुब्रत रॉय को पढ़ने में कुछ खास मन नहीं लगता। शुरूआती पढ़ाई-लिखाई कोलकाता में हुई और फिर वो गोरखपुर पहुंच गए। साल 1978 में सुब्रत रॉय ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर स्कूटर पर बिस्कुट और नमकीन बेचने का काम शुरू किया। एक कमरे में दो कुर्सी और एक स्कूटर के साथ उन्होंने दो लाख करोड़ रुपये तक का सफर तय कर किया। सपने बेचने में उन्हें महाराथ हासिल थी। दोस्त के साथ मिलकर उन्होंने चिट फंड कंपनी शुरू की। उन्होंने पैरा बैंकिंग की शुरूआत की। गरीब और मध्यम वर्ग को टारगेट किया। मात्र 100 रुपए कमाने वाले लोग भी उनके पास 20 रुपए जमा कराते थे। देश की गलियों-गलियों तक उनकी ये स्कीम मशहूर हो गई। लाखों की संख्या में लोग सहारा के साथ जुड़ते चले गए। हालांकि साल 1980 में सरकार ने इस स्कीम पर रोक लगा दी।

हाउसिंग सेक्टर में चमके सितारे

ये वो दौर था, जब सुब्रत रॉय सहारा ने हाउसिंग डेवलपमेंट सेक्टर में कदम रखा। इसके बाद वो एक के बाद सेक्टर में उनके पंख फैलते चले गए। रियल एस्टेट, फाइनेंस, इंफ्रास्ट्रक्चर, मीडिया , एंटरटेनमेंट, हेल्थ केयर, हॉस्पिटैलिटी, रियर एस्टेट, रिटेल, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी तक सहारा फैल चुका था। देश ही नहीं दुनियाभर में सहारा का डंका बज रहा था। 11 सालों तक सहारा टीम इंडिया का स्पॉन्सर रहा। जैसे जैसे सहारा का कारोबार बढ़ता गया, सुब्रत रॉय की संपत्ति दो गुनी, चौगुनी होती चली गई।

लाइफस्टाइल के लिए मशहूर

सहारा अपनी लाइफस्टाइल, लग्जरी के लिए मशहूर होते चले गए। अमेरिका के न्यूयार्क शहर में इनके 4400 करोड़ के दो आलिशान होटल हैं। मुंबई के एबीवैली में 313 एकड़ का डेवलपमेंट साइट, मुंबई के बरसोवा में 113 एकड़ की जमीन है। लखनऊ के गोमतीनगर में सुब्रत ने 170 एकड़ जमीन पर अपना पूरा शहर बसा डाला। देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके पास 764 एकड़ की जमीन है। माना जाता है कि उन्होंने अपने बेटों की शादी की तो उसमें 500 करोड़ से ज्यादा का खर्च किया था। कई जानी-मानी हस्तियां इस शादी में पहुंची थीं।

सहारा का भरोसा

टाइम्स मैगजीन ने सहारा को रेलवे के बाद दूसरी सबसे ज्यादा नौकरी देने वाली कंपनी बताया था। 11 लाख से अधिक कर्मचारी सहारा परिवार का हिस्सा थे। लेकिन फिर किस्मत ने ऐसी बाजी पलटी कि किसी को अंदाजा तक नहीं था कि खुद को सहारा श्री कहने वाले सुब्रत रॉय के दिन ऐसे फिरेगें कि उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी। वो साल 2009 था, जब सहारा ने कंपनी ने आईपीओ लाने की योजना बनाई थी। सहारा ने जब सेबी से IPO के लिए आवेदन दिया तो सेबी ने उससे DRHP यानी कंपनी का पूरा बायोडेटा मांग लिया।

ऐसे शुरू हुई सहारा सेबी के विवाद  और मामला  सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

सितम्बर 2009 से जब केंद्र में UPA की सरकार थी, सहारा समूह निवेशकों के लिए शेयर बाजार में उतारना चाह रहा था. इसके लिए सहारा इंडिया ने सेवी के सामने अपना प्रारंभिक प्रस्ताव रखा।

अक्टूबर 2009 में सहारा इंडिया ने शेयर बाजार में उतारने के लिए अपने प्रोसेसिंग को आगे बढ़ते हुए सहारा की दो कम्पनी सहारा इंडिया रियल स्टेट कारपोरेशन लिमिटिड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटिड ने कमोनी के रजिस्ट्रार के पास आईपीओ (रेड हैरिंग प्रॉस्पेक्ट्स) की अर्जी दाखिल की।

दिसंबर 2009 को सेबी के पास प्रोफेसनल ग्रुप फ़ॉर इन्वेस्टर ने सहारा की दोनों कम्पनियों के खिलाफ कथित तौर पर गलत लेनदेन होने की शिकायत कर दी।

जनवरी 2010 को रौशन लाल भी नेशनल हाउसिंग बैंक के जरिये सेबी के पास सहारा इंडिया की वैसी ही शिकायत कर दी।

सेबी ने इन शिकायतों पर सहारा समूह के इन्वेस्टमेंट बैंकर इनम सेक्युरिटीज़ और फिर बाद में सीधे सहारा ग्रुप से जवाब माँगा।

बाद में सेबी की जांच में ये बात सामने आई कि सहारा समूह ने 50 से अधिक निवेशकों से जिस तरीके से धन जुटाए है उसके लिए सेबी की अनुमति लेनी अनिवार्य थी. जिसका पालन नहीं किया गया।

इसके बाद बात आगे बढ़ी और नवम्बर 2010 में सेबी ने सहारा इंडिया की दो कम्पनियों को आदेश जारी करते हुए कहा कि निवेशकों से जुटाए गए धन निवेशकों को वापस किया जाए।

अब सेबी अपने फैसले पर अडिग था तब सहारा इंडिया ने सिक्योरिटी एपिलेट ट्रिब्यूनल में जाकर सेबी के फैसले का विरोध किया।

जून 2011 सेक्यूरिटीस ऐपिलेट ट्राईब्यूनल ने सेबी के फैसले को सही ठहराते हुए सहारा ग्रुप की दोनों कंपनियों से निवेशकों के 25,781 करोड़ रुपए लौटाने को कहा।

सेबी ने जब सहारा से निवेशकों के डिटेल और दस्तावेज मांगे तो सहारा की ओर से 127 ट्रक डॉक्यूमेंट भेजे गए। इन ट्रकों के कारण मुंबई के बाहरी इलाके में ट्रैफिक जाम लग गया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

यहां उल्लेखनीय है कि बीबीसी में प्रकाशित एक लेख के अनुसार सेबी के समक्ष शिकायत करने वाली एक ग्रुप थी जिसका नाम था प्रोफेशनल ग्रुप फ़ॉर इन्वेस्टर्स और दूसरे थे रौशन लाल। इन्हीं के शिकायत पर सेबी ने जांच बिठाया और विवाद बढ़ा। कुछ मीडिया के खबरों अनुसार उस समय के तत्कालीन केंद्र सरकार के कुछ राजनेताओं ने और तत्कालीन सेबी प्रमुख ने सहारा और सेबी के विवाद को अपनी नाक की बात बन ली जिसका नतीजा निवेशकों को भुगतना पड़ रहा है।

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यह लेख विभिन्न मीडिया में समय समय पर प्रकाशित खबरों के संकलन के आधार पर बनाई गई है। इस संबंध में कोई भी दावा balajeenews.com नहीं करता है।

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