अवैतनिक पारिवारिक काम का अनुपात अधिक है, स्व-रोज़गार और अवैतनिक पारिवारिक कार्यों में मुख्य रूप से महिलाएं लगी हुई हैं।
भारत के शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है। पिछले 22 साल में माध्यमिक या उससे ऊपर की शिक्षा प्राप्त बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ी है। सन् 2000 में सभी बेरोजगारों में शिक्षित युवाओं की हिस्सेदारी 54.2 प्रतिशत थी, जो 2022 में बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गई। शिक्षित (माध्यमिक स्तर या उससे ऊपर) बेरोजगार युवाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी (76.7 प्रतिशत) पुरुषों (62.2 प्रतिशत) की तुलना में ज़्यादा है।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) द्वारा जारी इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 से भारत में बेरोजगारी के विभिन्न पहलुओं को समझा जा सकता है।
ये आंकड़े ILO की रिपोर्ट से लिए गए हैं।
काम की तलाश में युवा
भारत में काम की तलाश में लगे कुल बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा हैं। लगभग 90% श्रमिक अनौपचारिक काम में लगे रहते हैं, जबकि नियमित काम का हिस्सा, जो 2000 के बाद लगातार बढ़ रहा था, 2018 के बाद कम हो गया है।
ठेकेदारी प्रथा में वृद्धि
रिपोर्ट के अनुसार वर्क फोर्स में शामिल कुल लोगों में से केवल एक छोटा प्रतिशत सामाजिक सुरक्षा के दायरे में है। इससे भी बुरी बात यह है कि ठेकेदारी प्रथा में वृद्धि हुई है, केवल कुछ प्रतिशत नियमित कर्मचारी ही दीर्घकालिक अनुबंधों के दायरे में आते हैं, जबकि भारत फिलहाल डेमोग्राफिक डिविडेंड के दौर से गुजर रहा है।
ये आंकड़े ILO की रिपोर्ट से लिए गए हैं।
एम्प्लॉयमेंट रेट की सच्चाई
रिपोर्ट में दिखाया गया है कि वर्कफोर्स पार्टिसिपेशन रेट में सुधार हुआ है। एम्प्लॉयमेंट रेट बढ़ा है। लेकिन इन मोटे-मोटे आंकड़ों के पीछे कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, मसलन- युवाओं का रोजगार वयस्कों के रोजगार की तुलना में खराब गुणवत्ता वाला है, स्थिर या घटती कमाई के साथ-साथ वयस्कों की तुलना में युवाओं में अवैतनिक पारिवारिक काम का अनुपात अधिक है, स्व-रोज़गार और अवैतनिक पारिवारिक कार्यों में मुख्य रूप से महिलाएं लगी हुई हैं।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि नौकरियों की क्वालिटी बढ़ाने के लिए भारत को कुछ ऐसे कामों की खोज करके उसमें निवेश करना चाहिए और उनमें कानून-क़ायदे बनाने चाहिए। ऐसे कामों से नौजवानों को ज़्यादा नौकरियां मिलने की संभावना है। उदाहरण के लिए केयर करने के काम, डिजिटल फ़ील्ड वगैरह।
शहरों के बढ़ने की दर बढ़ने और भारत में लोगों के शहर की तरफ पलायन करने की सम्भावना को देखते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि पलायन करने वालों, महिलाओं और गरीब नौजवानों की मदद के लिए शहरों के विकास की एक ऐसी योजना बनानी जरूरी है जिसमें सभी लोगों को शामिल किया जा सके।
कम वेतन वाले अस्थायी नौकरियों में दलित-आदिवासी ज्यादा
बढ़ती सामाजिक असमानताओं पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अफरमेटिव एक्शन (आरक्षण, आदि) और टारगेटेड पॉलिसी के बावजूद, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अभी भी बेहतर नौकरियों तक पहुंच के मामले में पीछे हैं। अपनी आर्थिक आवश्यकता के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की काम में भागिदारी तो है, लेकिन वे कम वेतन वाले अस्थायी आकस्मिक वेतन वाले काम और अनौपचारिक रोजगार में अधिक लगे हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, “सभी समूहों के में शैक्षिक स्तर पर सुधार के बावजूद, सामाजिक समूहों के भीतर पदानुक्रम कायम है।”
ये आंकड़े ILO की रिपोर्ट से लिए गए हैं।
युवाओं के पास कौशल नहीं है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि युवाओं के पास काम करने का कौशल नहीं है। 75% युवा अटैचमेंट के साथ ईमेल भेजने में असमर्थ हैं, 60% फ़ाइलों को कॉपी और पेस्ट करने में असमर्थ हैं, और 90% मैथ के फार्मूला को स्प्रेडशीट में डालने में असमर्थ हैं।
युवा भारत का बूढ़ा वर्कफोर्स, रोजगार की संख्या में गिरावट के बावजूद बढ़े हैं 45 पार वाले कर्मचारी
पिछले सात साल में वर्कफोर्स में सबसे बुजुर्ग आयु वर्ग की हिस्सेदारी 37% से बढ़कर 49% हो गई है।